यहाँ पर लगता था दुल्हनों का बाजार और लगाई जाती थी दुल्हनों की बोली |

Prachin Mishr Sabhyata
Mishr Sabhyata 

दुल्हन की बोली लगा कर यहाँ होती थी शादिया 

आज के इस आधुनिक समय में किसी भी व्यक्ति केलिए अपना जीवन साथी ढूँढना बेहद मुश्किल और चुनौती पूर्ण काम है। लोग अनेक प्रकार के तरीके अपनाते है अपने जीवन साथी को ढूंढने केलिए। कई बार कई लोगो को सफलता भी मिलती है तो कई लोग असफल भी हो जाते है।

वैसे तो अलग अलग जाती और धर्म के अपने अपने तरीके है अपने जीवन साथी को पाने के। कई जातियों में love marriage कर सकते है तो कई जातियों में arrange marriage के सिवा कोई और विकल्प उपलब्ध ही नहीं है। जिस caste में लोगो के पास arrange marriage के सिवा कोई और विकल्प नहीं है उनके लिए तो जीवन साथी मिलना बहोत ही कठिन काम है

हमने जो भी बाते आपको बताई वो कठिन तो भले है लेकिन सुरक्षित है क्योकी आज जो चौका देने वाले तरीको के बारे में हम आपको बताने जा रहे है जिसका इस्तेमाल इतिहास और दुनिया में जीवन साथी को पाने केलिए किया जाता था। आप को जो बाते हम आज बताने जा रहे है जिसे पढ़ कर आप यह तो जरूर कहेंगे की उस ज़माने से तो आज के सोशल मीडिया और मेट्रीमोनियल साइट्स पर ही जीवन साथी ढूँढना अच्छा है।

प्राचीन मिश्र के समय की सादिया 

आज के इस समय में सादी करने से पहले लोग सामने वाले पक्ष की व्यवहारिता पर ज्यादा ध्यान देते है। और व्यवहारिता दिखाते भी है। कुछ ऐसी ही व्यवारिकता देखने को मिलती थी मिश्र की शादियों में  वह पर व्यहवार को ज्यादा महत्त्व दिया जाता था।

जिस प्रकार से आज के समय में फेंसी शादीयो की रस्मे की जाती है और जटिल और खर्चालु समारोह किये जात्ते है ऐसा कुछ भी मिस्र की शादियों में नहीं हुआ करता था। उनकी रसम केवल इतनी थी की अगर महिला को कोई पुरुष अच्छा लगता था तो वह अपना सामान लेकर उसके पसंदीदा पुरुष के वहा चली जाती थी। इस का  मतलब यह माना जाता था की उनकी शादी हो गई।

आपको बतादे की शादी से पहले  उस माहिला के पिता और पति के बिच एक करार होता था। और इसमें शादी के कामयाब न होने पर या फिर छूटा छेड़ा होने पर किसको क्या मिलेगा यह तय किया जाता था जिसकी एक शर्त यह थी की शादी कामयाब न होने पर बच्चे महिला के पास ही रहेंगे

शादी की बाजार 

प्राचीन समय की एक परंपरा थी जिसे जान कर आप दंग रहे जायेंगे यह परंपरा इस लिए थी ताकि सभी को अपना जीवन साथी मिल सके और इस में चाहे पुरुष बूढ़ा हो या महिला बदसूरत सभी इस बाजार में शामिल हो सकते थे। 

इस बाजार में अन्य गांव के लोग भी शामिल हो सकते थे। यह बाजार सभी लोगो केलिए हमेसा खुला रहता था। यहाँ पर बोली लगाई जाती थी लेकिन बोली लगाने वाले को शादी के टिके रहने की गारंटी देने वाला एक सहायक प्रदान करना होता था। अगर कोई डील किसी वजह से पूरी नहीं हो पाती थी तो money back गारंटी होती थी। 

यूरोपीय स्थानों में पंखो का इस्तेमाल 

आज के आधुनिक समय में तो इलेक्ट्रिक पंखे मौजूद है लेकिन पहले के समय में पंखे हाथो द्वारा चलाये जाते थे। और महिलाओ द्वारा हाथ के पंखो का इस्तेमाल ज्यादा किया जाता था। 18 वि सदी आते आते पुरे यूरोप में पंखों का फैशन चल गया था। आपको बतादे की महिलाओ के पंखे चलाने के पीछे एक गुप्त भाषा छुपी हुई थी। उसे पंखा भाषा भी कहते है। 

किसी भी पार्टी में महिलाये पंखा चला कर अपने चाहने वाले को पंखा भाषा में कुछ खास संकेत दिया करती थी। अगर हम भाषा के बारे में बात करे तो पंखा चलाते हुए अगर महिल खुले पंखे के पीछे अपनी आखे छुपाती थी तो उसका मतलब होता था की वह उस से प्यार करती है और शादी भी करना चाहती है। 

अगर महिला बाए हाथ में पंखा ले कर चलती थी तो उस संकेत का मतलब होता था की वह उस से अकेले में बात करना चाहती है। वैसे ही बाये हाथ में पंखा घुमा कर महिलाये यह जताती थी की उनके ऊपर नजर रखी जा रही है। और भी कई सारे संकेत महिलाये पंखो के माध्यम से दिया करती थी।










यहाँ पर लगता था दुल्हनों का बाजार और लगाई जाती थी दुल्हनों की बोली |  यहाँ पर लगता था दुल्हनों का बाजार और लगाई जाती थी दुल्हनों की बोली | Reviewed by Mahi Chauhan on March 27, 2019 Rating: 5

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