आखिर खिलजी ने क्यों जलाया था नालंदा विश्वविद्यालय को जानिए पूरी सच्चाई। Story Of Nalanda University
![]() |
| Nalanda University |
भारत की भव्य विश्वविद्यालय नालंदा
दोस्तों आज हम बात करने जा रहे है एक ऐसे ऐतिहासिक धरोहर के बारेमे जिसके बारेमे जान कर हमें भारतीय नागरिक होने पर गर्व की अनुभूति होती है। दोस्तों प्राचीन समय में वैदिक प्रक्रिया को अपनाते हुए बहोत सारी शिक्षण संस्थाओ की स्थापना की गयी थी। भारत में बहोत सारी विश्वविद्यालय कि स्थापनाये की गई जिसमे से ३ विश्वविद्यालय ऐसी थी जिसे प्राचीन विश्वविद्यालय में गिना जाता है।
तक्षशिला विश्वविधालय
विक्रमशिला विश्वविद्यालय
नालंदा की स्थपना और संस्थापक
इसके आलावा भी बहोत सारी विस्वविधाय की स्थापना भारत के प्राचीन समय में की गयी। लेकिन दोस्तों इन सभी विद्यालयों में नालंदा विश्वविद्यालय सबसे बड़ा उच्चशिक्षण और सर्वाधिक विख्यात शिक्षण का केंद्र था।
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना उत्त वंस के सम्राट कुमार उत्त प्रथम ने 450 इसवी में की थी। दोस्तों कई यात्रियों ने सम्राट कुमार गुप्त को इस संस्था का संस्थापक बताया है। आज भी हमें नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष देखने को मिलते ही जो प्राचीन भारत के गौरवमय इतिहास की गवाही देते है
आपको बतादे की आज भी नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेषों को देखने केलिए दुनियाभर के लोग भारत आते है। और नालंदा विश्वविद्यालय को यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज में स्थान दिया गया है। नालंदा विश्वविद्यालय में देश और विदेश के कुल मिला कर लगभग 10000 विद्यार्थी यहाँ पर पढाई करने आते थे। जिन्हे 1000 से भी ज्यादा अध्यापक पढ़ाया करते थे। इस विद्यालय में केवल बौद्ध धर्म ही नहीं परंतु और भी कई सारे धर्मो के विद्यार्थियों को भी शिक्षा दी जाती थी।
विद्यार्थियो को देनी पड़ती थी प्रवेश परीक्षा
जैसे की दोस्तों आजके समय में कोई बड़ी कॉलेज या फिर स्कूल में एड्मिसन लेनेमें जीतनी कठिनाई होती है उसी प्रकार से उस समय में भी इस विद्यालय में लोगो को एड्मिसन बहोत कठिनाइ से मिलता था। जिस प्रकार से आजके समय में हम विद्यालय में प्रवेश परीक्षा देते है ठीक उसी प्रकार से नालंदा विश्वविद्यालय में भी विद्यार्थी को प्रवेश लेने केलिए प्रवेश परीक्षा देनी पड़ती थी जोकि बहोत कठिन काम था नालंदा विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा बहोत कठिन होती थी।
इस विश्वविद्यालय में पढ़ने आने वाले सभी विद्यार्थियों को संस्कृत भाषा सीखनी पड़ती थी जो की फरजियात थी। उसके बाद ही उन्हें आगे की पढाई करने को मिलती थी। आज के समय में हॉस्टल की सुविधा हमें हर जगह पर देखने को मिलती है लेकिन क्या आप जानते है की यह हॉस्टल की सुविधा कहा से शुरू हुई ? अगर नहीं जानते तो आपको बतादे की हॉस्टल की सुविधा नालंदा विश्वविद्यालय से ही सुरु हुई थी। जि हा दोस्तों नालंदा विश्वविद्यालय दुनिया का एक मात्र ऐसा विश्वविद्यालय था जहा पर विद्यार्थियों को रहने केलिए हॉस्टल की सुविधा मुहैया कराइ जाती थी। और खाने पिने की भी सुविधा दी जाती थी।
इस विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों को रहने केलिए लगभग 300 से भी ज्यादा कमरे (रूम) थे। आपको बतादे की इस विश्वविद्यालय में एक दुनिया की सबसे बड़ी पुस्तकों की लायब्रेरी उपलब्ध थी जिसमे लगभग 3 लाख से भी ज्यादा पुस्तके मौजूद थी।
आखिर खिलजी ने क्यों जलाई नालंदा विश्वविद्यालय
अब अगर हम बात करे की इस महान विश्वविद्यालय को आखिर कर क्यों जलाया गया तो आपको बतादे की यह सवाल हर किसी के मनमे उठाना आम बात है। और इस इस बारेमे दुनिया भर में कई सारी कहानिया प्रचलित है जो अलग अलग प्रकार से अपना पक्ष रखती है।
दोस्तों 'बख्तियार खिलजी' नाम के एक तुर्की मुस्लिम लुटेरे ने इसे 1999 ईसवी में इस विश्वविद्यालय को जलाकर खाख कर दिया था। और इसे जलाने की वजह से इसमें पड़ी हुयी लाखो पुस्तके जल कर राख हो गयी थी। इस में लगाई गई आग को बुझाने में लगभग 6 महीने का समय लगा था। दोस्तों इस बात से ही अंदाजा लगाया जा सकता है की यह लायब्रेरी कितनी बड़ी होगी और इसमें कितनी किताबे राखी हुयी होगी।
इस विश्वविद्यालय को जलाने के पीछे एक बड़ी कहानी प्रचलित है जो कुछ इस प्रकार से है
एक बार खिलजी बहोत ज्यादा बीमार हुआ और उसके वैद और हाकिम उसकी इस बीमारी का इलाज करने में बार बार असफल हो रहे थे। और वो बहोत परेशान था इतने में किसीने खिलजी को नालंदा विश्वविद्यालय के आयुर्वेद साखा के प्रमुख 'आचार्य राहुल श्रीभद्रजी' से उसकी इस बिमारी का इलाज करवाने का सुझाव बताया। लेकिन घमण्डी खिलजी किसी गैर इंसान से अपना इलाज करवाने केलिए तैयार नहीं था उसे अपने वैद और हकीमो पर ज्यादा भरोसा और घमंड था। खिलजी का मानना था की भारतीय वैद्यो को उसके वैद्यो से ज्यादा ज्ञान नहीं है।
लेकिन फिरभी उसे अपनी जान बचाने केलिए इस विश्वविद्यालय के वैध का सहारा लेना पड़ा। लेकिन इलाज के दौरान खिलजी ने राहुल श्रीभद्रजी के आगे ये शर्त रखते हुए इलाज करवाया की में कोई भी भारतीय दवाई नहीं खाऊंगा और मेरा इलाज ठीकसे हो जाना चाहिए। नहीतो में तुम्हे मोत के घाट उतार दूंगा।
आचार्य श्रीभद्रजी एक तरकीब के साथ दूसरे दिन खिलजी के पास कुरान लेकर पहोच गए। और खिलजी से कहा की आपको इस कुरान के पांच पन्ने रोज पढ़ने है और वह भी पांच दिनों केलए। खिलजी ने यह बात मानते हुए कुरान को पांच दिन तक पढ़ा। और पांच दिन तक पढ़ने के बाद वह ठीक हो गया।
अब अगर आप सोच रहे है की कुरान पढ़ने से खिलजी कैसे ठीक हुआ तो दरसल वैधजी ने कुरान के पन्नों पर कुछ औषधीया लगाई थी जोकि पन्ने बदलते वख्त खिलजी के मुहमे जाती थी और इस प्रकार से खिलजी ठिक होता गया
इर्षा के मारे खिलजी ने लगवा दी आग
अब कहानी यहाँ सुरु होती है की जब खिलजी ठीक होगया तो खिलजी को उस आचार्य का और नालंदा विश्वविद्यालय का अहसान मानना चाहिए उसकी बजाये खिलजी को गुस्सा आगया क्योकि इस बात से खिलजी के स्वाभिमान को ठेस पहुंची थी की उसके सरे हाकिम और वैध ये इलाज करने में असफल रहे और एक भारतीय वैद्य ने उसका इलाज कर दिखाया।
इसके बाद खिलजी नालंदा विश्वविद्यालय पहुंच गया और वह पहोचने पर नालंदा की इतनी भव्यता उससे देखि नहीं गयी और उसके मनमे इर्षा उत्पन्न हुयी और ईसि वजह से इस लुटेरे खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय में आग लगवा दी। और इस आग के साथ नालंदा विश्वविद्यालय की सारी भव्यता और पुस्तके जलकर खाख हो गई। इस वजह से भारत का बहोत बड़ा नुकसान हुआ जिसकी भरपाई करना मुश्किल था। जलवाई
आखिर खिलजी ने क्यों जलाया था नालंदा विश्वविद्यालय को जानिए पूरी सच्चाई। Story Of Nalanda University
Reviewed by Mahi Chauhan
on
March 12, 2019
Rating:
Reviewed by Mahi Chauhan
on
March 12, 2019
Rating:

No comments: