कामाख्या मंदिर का इतिहास और तथ्य - Kamakhya Temple History in Hindi

Kamakhya Temple (कामाख्या मंदिर) पुरे भारत में कुल 51 शक्तिपीठ है और कामाख्या मंदिर उन 51 शक्तिपीठ में से एक है। यह मंदिर माता कामाख्या देवी का मंदिर है। और यह मंदिर आसाम के गुहाटी में  स्थित है। कामाख्या मंदिर बहोत ही प्रसिद्द मंदिर है खास तोर पर साधुओ केलिए। इस मंदिर की कहानी और इतिहास बहोत ही रोमांचक है। इस मंदिर की history और mystory बहोत ही जानने लायक है। आज हम आपको रूबरू करवाने जा रहे है कामाख्या मंदिर के इतिहास से।

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Kamakhya Temple History

कामाख्या मंदिर का इतिहास और रहस्य - History And Mystery Of Kamakhya Temple

आईये अब बात कर लेते है कामाख्या मंदिर के इतिहास के बारेमें। मान्यता यह है की माता पार्वती के पिता "राजा दक्ष" द्वारा एक बहोत बड़े यज्ञ (महा यज्ञ) का आयोजन किया गया था राजा दक्ष ने किसी कारणवस भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया था और इसी वजह से भगवान शिव राजा दक्ष से नाखुश थे लेकिन फिरभी माता पर्वती बिना आमंत्रण के अपने पिता के घर इस यज्ञ में पहुंच गयी। वहा पर माता पारवती के आगे भगवान शिव का बहोत अपमान किया गया और अपने पिता के मुँह से अपने पति का अपमान माता पार्वती से सहा नहीं गया और इसी वजह से माता पार्वती हवन कुंड में कूद गई और अपने प्राण त्याग दिए। 

जब भगवान शिव को इस बात का पता चला तो वह बहोत क्रोधित हो गए और राजा दक्ष ने जहा यज्ञ करवाया था वहा जा पहुंचे। वहा उन्होने देखा तो माता सती का शव पड़ा हुआ था। उन्होंने वह शव उठाया और अपने कंधो पर डाल दिया और बहोत ही क्रोधित हो कर वहा से निकल गए। और फिर उन्होंने तांडव सुरु कर दिया। यह बात भगवान विष्णु को पता चली तो उन्होंने भगवान शिव के क्रोध को शांत करने केलिए अपना सुरदर्शन चक्र चलाया और माता पार्वती के शव के टुकड़े कर दिए। जब विष्णु भगवान ने माता पार्वती के शव के टुकड़े किये तो वह टुकडे कुल 51 हिस्सों में बट गए। जहा जहा पर माता पार्वती के शव के टुकड़े गिरे थे वहां पर शक्तिपीठ बनायी गई। ऐसे करते हुए कुल 51 शक्तिपीठो का निर्माण हुआ। ऐसा माना जाता है की उन टुकड़ो में से माता की योनि और गर्भ यहाँ पर (जहा अभी कामाख्या शक्तिपीठ है) आकर गिरे जिस से कामाख्या मंदिर का निर्माण हुआ। 

कमख्या मंदिर का निर्माण -  Kamakhya Temple History (How It's Built) In Hindi

इसा 16वि शताब्दी में कामरूप के राजाओ के बिच युद्ध चलते रहे, उसके बाद राजा विश्वसिंह ने विजय प्राप्त  किया और पुरे कामरूप के राजा बने। लेकिन युद्ध के दौरान उनके साथी उनसे बिछड़ गए थे और राजा विश्वसिंह उनकी खोज कर रहे थे, उनकी खोज करते करते वह एकबार नीलांचल पर्वत पर जा पहुंचे। वह बहोत थके हुए थे इसलिए थोड़ा विश्राम करने केलिए वह एक वृक्ष के  निचे बैठ गए। वहा पर उनको एक वृद्धा मिली और उसने बताया की यह जगह बहोत जागृत है। तभी विश्वसिंह ने वहा पर एक मन्नत मानी और कहा की अगर उनके बिछड़े हुए साथी उनको मिलजाते है तो वह (राजा विश्वसिंह) यहाँ पर सोने का मंदिर बनवाएंगे। आखिर कर उनकी मन्नत पूरी हुई और उनको अपने बिछड़े हुए साथी मिल गए। फिर राजा ने मंदिर निर्माण का काम सुरु करवाया वहा पर खुदाई के दौरान कामाख्या शक्तिपीठ का निचला भाग बहार निकल आया। और उसी भाग के उपर मंदिर बनाया गया। और मंदिर निर्माण में रखी गयी ईंटो में एक एक रति सोना रखा गया। जब राजा विश्वसिंह की मृत्यु हुई उसके बाद मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया। 1565 इसा पूर्वे सुक्लध्वज द्वारा वर्तमान मंदिर का निर्माण करवाया गया। 

Mystery And Facts About Kamakhya Temple - कामाख्या मंदिर के तथ्य और रोचक बाते 


1. इस मंदिर के गर्भ गृह में पथ्थर का और योनि आकार का एक कुंड बना हुआ है और उसमे से पानी निकलता रहता है। इस कुंड को लाल रंग के कपडे से ढका हुआ रखा जाता है। जिसे योनि कुंड के नाम से भी जाना जाता है। 

2. यहाँ इस मंदिर में हररोज आरती और पूजा तो होती ही है लेकिन साल भर में कुछ विशेष दिनों पर इस मंदिर में विषेस पूजा का आयोजन किया जाता है।
3. यहा पर प्रति वर्ष एक विशेष मेला लगता है जिसे 'अम्बुबाची मेला' कहा जाता है। इस मेले में देश के अलग कोने से अघोरी और तांत्रिक हिस्सा लेते है। मान्यता के अनुसार अम्बुबाची मेले के दरमियान माता कामाख्या रजस्वला होती है और इस दौरान योनि कुंड से जल की जगह रक्त बहता है। 

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कामाख्या मंदिर का इतिहास और तथ्य - Kamakhya Temple History in Hindi कामाख्या मंदिर का इतिहास और तथ्य - Kamakhya Temple History in Hindi Reviewed by Mahi Chauhan on May 04, 2019 Rating: 5

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